Kiran - 1 in Hindi Thriller by Veena books and stories PDF | किरन - 1

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किरन - 1

" नहीं नहीं। मेरे पापा को छोड़ दो।" छह साल की आभा ने एक परछाई को देखते हुए कहा। " प्लीज़ उन्हें कुछ मत करना.....।" यह कहते कहते सामने का नजारा देख वो सुन्न पड़ गईं। खून में लिपटे उसकी पिता की लाश उसके सामने पड़ी थी। इस बार फिर वो अपने पिता को नही बचा पाईं। रोते रोते उसके आसूं भी सूखे नहीं थे, तभी उसके पिता का लहूलुहान शरीर हिला। वो उनके पास गई, लेकिन जब उसने शरीर पलटा, वो यकीनन उसके पिता नही थे। हो ही नहीं सकते।

काली आंखें उसे घूर रही थी। अचानक वो हसने लगे, जोरों की हसीं जिससे उसके कानों में से खून निकल ने लगा। उसने उस लाश से दूर जाने की कोशिश की, लेकिन असफल। उस लाश ने उसका हाथ पकड़ लिया, " बच्ची बताओ पापा को कहा हो तुम। हां हां हां।" वो हसीं जिस से उसके कानों में दर्द हो रहा था।

आभा अब उस दर्द को नही सह पा रहीं थी। " नहीं।" वो चीखी। " नहीं। तुम सच नहीं हो।" उसने रोते हुए किंतु अपनी आवाज में भारीपन लाते हुई कहा। वो वहा से उठी और भाग गई। " में फिर से अपने सपने में कैद हो गई हूं। मुझे यहां से निकल ना होगा। निकलों यहां से आभा, अर्जुन इंतजार कर रहा है।" उसने अपने आप को प्रोत्साहित किया। बिना कुछ देखे वो भागती रही, भागती रही। पर उस डरावनी हसी की आवाज अब भी उसके कानों में गूंज रही थी।

अचानक उसके सामने एक ट्रक आया, वो जोरों से चिलाई, पर किसी ने उसका हाथ पकड़ उसे ट्रक के सामने से खिंच लिया और आखिरकार उसकी आंखे खुली। उसका छोटा भाई अर्जुन उसका हाथ पकड़ उसके पास बैठा था। उसने आभा को पानी का ग्लास दिया।

" क्या तुम ठीक हो दीदी ?" अर्जुन ने पूछा।

" हां। बिलकुल।" आभा ने पानी पिया। " लेट नही हो रहा ? जाओ जाकर तैय्यार हो जाओ, में नही चाहती तुम्हारा छिछोरा दोस्त फिर से घर में चौकड़ी मार कर बैठ जाएं। " उसने मज़ाक में कहा।

लेकिन अर्जुन के चेहरे पर कोई हंसी नहीं आईं। " क्या फिर से वही सपना देखा?" अर्जुन ने पूछा।

वो कुछ पल के लिए चुप हो गई। " हां।" आभा ने अपना चेहरा छुपाते हुए कहा।

" इस महीने यह पांचवीं बार है। और महीने के पंद्रह दिन ही हुए हैं? तुम जानती हो ऐसा क्यों हो रहा है?" अर्जुन ने पूछा। उसके पास कई सवाल थे। जिनके जवाब उसकी बहन छुपा रही थी।

" नहीं मैं नहीं जानती।" आभा ने आवाज ऊंची करते हुए कहा। " कुछ नहीं जानती मैं। अब अगर तुम्हारी पुछताछ हो चुकी है, तो जाकर तैयार हो जाओ।" उसने पूरी तरह सक्ती दिखाने कि कोशिश कि, लेकिन असफल रही।

अर्जुन ने खड़े होकर अपनी बहन को गले से लगाया। " मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं। ये बात याद रखना। "

आखिरकार अपने भाई हारकर उसने कहा, " पंडित जी ने कहा था, एक पड़ाव के बाद सपने बार बार आयेंगे। इस साल के बाद शायद रोज़ रोज़ आएं।"

" इसका कोई हल तो बताया होगा उन्होंने?" अर्जुन ने पूछा।

" नहीं कोई हल नहीं है। और अब तुम्हारा नहीं पता लेकिन मेरी यक़ीनन अपने बाॅस से नहीं जमती।" आभा ने एक प्यारी सी मुस्कान के साथ अपने भाई को ' अब वह ठीक है ' इस बात का यक़ीन दिलाते हुए कहा।

थ........ड के साथ सामने का दरवाजा खुला।

" डुड। तुमने डरा दिया।" अर्जुन ने अपने दिल पर हाथ रखते हुए कहा।
" तुमने इसे घर की चाबियां क्यों दी?" आभा ने पूछा।
" कितनी बार कहा, मैंने नहीं दी। उसने मेरे बॅग में से निकालीं, काॅपी बनाई और रख दी।" अर्जुन ने जबाव दिया।
" तो वापस चुरा ले।" आभा।
" तीन बार लें चुकां हूं।" अर्जुन।

" ओ हैलो में यहां पर नहीं हूं ऐसे बात करना बंद करोंगे। जब की में यहीं खड़ा हूं।" राज ने दोनों को टोका।

" तो क्यों खड़े हो? चलें जाओ। You are not welcome here। " इतना कह आभा बाथरूम में चली गई।

" देख बता दें अपनी बहन को मुझ से तमीज से बात करें, वरना मैं शादी कैंसल कर दुंगा।" राज ने बाथरूम की ओर देखते हुए कहा।

" डुड मैं तेरा दोस्त हूं। तुझे जानता हूं। इसीलिए बता दूं, तेरी उस से शादी नहीं होगी।" अर्जुन।

बाथरूम का दरवाजा बंद कर उसने अपने भाई की उसके दोस्त संग चल रही अनबन सुनी। यही कुछ पल है जिन्हें वो समेट सकती हैं। यही कुछ लम्हें उसकी इस ज़िन्दगी की खुशियों के है। वहीं दरवाजे पर बैठ हंसते हंसते वो रो पड़ी।
" कैसे बताऊं तुम्हें की यह सब तब रूक जाएगा जब मैं सांस लेना बंद कर दूंगी।"

( कैसी होगी वह जिंदगी जीसे बैठ कर बस उसकी भयानक मौत का इंतजार करना है? )